कविता संग्रह >> आज की मधुशाला आज की मधुशालाडॉ. संंजीव कुमार
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आज की मधुशाला
भूमिका
मधुशाला श्री हरिवंशराय बच्चन की महानतम रचनाओं में से एक है। बच्चन जी मधुशाला का प्रणयन 1985 में किया था। इस संग्रह में उनकी 135 रूबाइयां हैं। अपनी प्रासंगिकता के लिए उन्होंने ऋग्वेद के प्रथम मंडल 90 वां सूत्र उद्धत किया है
मधुवाता ऋतायते मधु क्षरन्तिसिन्धवः माधवीनः सन्त्वोशधीः। मधुनक्तमुशोशसो मधुमत्पार्थिवरजः मधु द्यौरस्तु नः पिता। मधुमान्नोवनस्पतिः मधमाअस्तुसूर्यः माधवीर्गावोभवन्तु नः। मधु मधु मधुतृप्यधवम् तृप्यधवम् तृप्यध्वम्।
मधुशाला की रूबाइयों को पढ़कर या सुनकर, प्रायः ऐसा लगता था जैसे बच्चनजी इस अंगूरी पेय के भक्त हों, किंतु वो कभी भी मदिरा को हाथ नहीं लगाते थे। मधुशाला सुनाते समय वह उसमें लीन हो जाते थे। अपने समय में मधुशाला की हर काव्य मंच पर मांग थी और हर काव्य प्रेमी की सुभेक्षा कि उसे मधुशाला सुनने को मिले।
किंतु समय बदल गया है, न अब वैसे पेय हैं, न वैसी साकी और न वैसी मधुशालाएं। मधुशाला की रूबाइयों की जो पुरानी छाप थी मेरे मन में यह विचार आया कि उसे छेड़े बिना यदि आज की परिस्थिति पर अवलोकन किया जाए तो शायद बहुत ही सार्थक अवदान प्राप्त हो सकता है। इस पृष्ठभूमि में मैंने 'आज की मधुशाला' लिखने का निर्णय लिया है।
मधुशाला की रूबाइयों का वर्तमान समय से तुलना करने में कठिनाई आई कि उसे किस प्रकार प्रांसगिक बनाये रखा जाए और वह नवीकृत भी हो जाये। अत: मैंने प्रत्येक रूबाई को आधार में ले कर वर्तमान समय काल से तुलनात्मक अनुशीलन करने का प्रयास किया है। इस प्रयास मंर अनुवाद शैली का प्रयोग नहीं किया गया है, अपितु स्वतंत्र किन्तु समभाव की रूबाइयां प्रस्तुत की गई हैं। जिनमें पूर्वकालिक मधुशाला की छाया स्पष्ट है, किंतु वर्णनात्मक तथ्य प्रायः भिन्न मिलते हैं।
मधुशाला की 135 रूबाइयों की ही रचना की गई है और उन्हीं से सुसज्जित यह पुस्तक मनीषियों और पाठकों के लिए प्रस्तुत है। उनके सुझावों को हम सदैव सम्मान देंगे।
डा. संजीव कुमार
मो. 9873561826
हंटर्स प्वाइंट स्ट्रीट
सैन एंटोनियो, टेक्सास-78230 (यूएसए)
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